Archive for जुलाई, 2008

साहित्यानुरागी

जुलाई 4, 2008

चौपटस्वामी की चौपट कविता

  

साहित्यानुरागी

 

 बाबा छाप या एक-सौ बीस

डालकर   देसी पत्ता

चुभलाते-चबाते हुए

— कचर-कचर

पीक इतै-उतै थूकते

बगराते   हुए

— पचर-पचर

चेलों की जमात से लगातार

बोलते-बतियाते हुए

— कचर-पचर

वे सुन रहे हैं कवि की कविता

अंगुली से चूना चाटते हुए

दोहरे हुए जाते हैं आनन्द में

बोलते हुए, ‘लचर-लचर’ ।

 

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