चौपटस्वामी की चौपट कविता
साहित्यानुरागी
बाबा छाप या एक-सौ बीस
डालकर देसी पत्ता
चुभलाते-चबाते हुए
— कचर-कचर
पीक इतै-उतै थूकते
बगराते हुए
— पचर-पचर
चेलों की जमात से लगातार
बोलते-बतियाते हुए
— कचर-पचर
वे सुन रहे हैं कवि की कविता
अंगुली से चूना चाटते हुए
दोहरे हुए जाते हैं आनन्द में
बोलते हुए, ‘लचर-लचर’ ।
****