निलय उपाध्याय की एक कविता
जोकर
सबसे पहले किसे जलील करते हैं जोकर ?
खुद को ।
उसके बाद किसे जलील करते हैं ?
समाजियों और नर्तकों को ।
और उसके बाद ?
उसके बाद
बहुत आक्रामक हो जाती है जोकर मुद्रा
वे हंसते हुए उतार लेते हैं
देवताओं के कपड़े ।
जो जानते हैं अश्लीलता की ताकत
और समाज में
उसे सिद्ध करने की कला
सिर्फ़ जोकर नहीं होते ।
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( नंदकिशोर नवल व संजय शांडिल्य द्वारा संपादित काव्य संकलन ‘संधि-वेला’ से साभार )
मई 23, 2008 को 5:35 अपराह्न |
बेहद अच्छी कविता है…..
मई 24, 2008 को 4:13 पूर्वाह्न |
गदर! चुन के निकाली है यह निलय उपाध्याय की कविता।
सच में कोई जोकर जोकर नहीं होता। हंसते हुये अपने कोर में साडिज्म तहियाये रहता है।