तीन कुत्ते धूप खाते हुए बातें करते जाते थे ।
पहले कुत्ते ने मानो स्वप्न देखते हुए कहा, “वास्तव में यह बड़े आनन्द की बात है कि हम इस ‘श्वानयुग’ में पैदा हुए हैं। भला, सोचो तो सही,कितनी सहूलियत से हम लोग जल,थल और आकाश की यात्रा करते हैं। देखो न, हमारे आराम के लिए, यहां तक कि हमारी आंख,कान,नासिका के सुख के लिए, कैसे-कैसे आविष्कार हुए हैं।”
तब दूसरा कुत्ता बोला, “अजी, इतना ही नहीं ,कला के प्रति भी हमारा झुकाव हुआ है। चंद्रमा को देखकर हम लोग अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक ताल-स्वर से भौंकते हैं। जब हम पानी में अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं तो हमें अपना चेहरा पूर्वकाल की अपेक्षा अधिक सुघड़ नज़र आता है।”
तब तीसरे कुत्ते ने कहा, “सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस श्वानयुग में कितना सुस्थिर विचार-साम्य है।”
इसी समय उन्होंने देखा कि कुत्ता पकड़नेवाला चला आ रहा है।
तीनों कुत्ते छलांग मारते हुए गली में भागे। भागते-भागते तीसरे कुत्ते ने कहा, “प्राण बचाना चाहते हो तो जल्दी भागो, सभ्यता हमारे पीछे पड़ी हुई है।”
— खलील जिब्रान
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पुस्तक ‘दि वान्डरर’ के हिंदी अनुवाद ‘बटोही’ से साभार
प्रकाशक : सस्ता साहित्य मंडल,नई दिल्ली
फ़रवरी 12, 2008 को 1:17 अपराह्न |
अति सुंदर और सामयिक
फ़रवरी 12, 2008 को 2:11 अपराह्न |
सभ्य और बुद्धिमान; सभ्यता से आतंकित। 🙂
फ़रवरी 12, 2008 को 2:53 अपराह्न |
मैं सभ्यता वाली बात समझ नहीं पाया। थोड़ा मेरी अज्ञानता से पर्दा उठाएँ।
फ़रवरी 12, 2008 को 3:34 अपराह्न |
वाह !
फ़रवरी 12, 2008 को 4:16 अपराह्न |
bahut khubsurat lekh
फ़रवरी 12, 2008 को 4:56 अपराह्न |
श्वान-कथा पढ़कर आसपास देखने को, सोचने को मजबूर हुआ। शुक्रिया…
अगस्त 25, 2009 को 1:23 अपराह्न |
JAISE MANO KAHTE HAIKI HAMNE SABYA BANKE KUCH NAHI PAYA VIKAS KI HAMARI CHAHAT HAME AK MEK SE ALAG KARDIYA OR KUDRAT KE DUSRE JIVO KOBHI HAM SABYATA KE NAM PAR JINE NAHI DETE YAHI HAMARA VIKASHAI? ADMI KO APNE APKE BAREME OR APNE
KARMO KE BAREME SOCHNA CAHIA.
दिसम्बर 1, 2009 को 2:14 अपराह्न |
very good dear aap to dil win kar liya