आपोन काजे अचोल होले चोलबे ना, भाई चोलबे ना …

यह एक   स्वतःस्फूर्त महारैली थी . और तदुपरांत एक ऐतिहासिक जनसमावेश .

कोलकाता की भाषा में कहें तो ‘महामिछिल‘ .

यूं तो कोलकाता को ‘मिछिलकेजुलूसों के — शहर के रूप में जाना जाता है . और सबके लिए अपना ‘मिछिल’  होता है ‘महामिछिल’ .

पर इस महाजुलूस की बात ही कुछ और थी . बिना किसी राजनैतिक पार्टी के आह्वान के, सिर्फ़ बुद्धिजीवियों की पुकार पर, यह आम नागरिकों का स्वतःस्फूर्त समावेश था .

किसी को लाया नहीं गया था,किसी को मुफ़्त खिलाया नहीं गया था , किसी को कुछ दिया नहीं गया;बल्कि उनसे कुछ लिया ही गया —  नंदीग्राम के संकटग्रस्त — मुसीबतज़दा — किसानों की यथासम्भव मदद के लिए यथासामर्थ्य धनराशि .

और वही मध्यवर्ग दे रहा था जिसे न जाने कितनी बार हम और आप उसकी जीवनशैली और लिप्सा के लिए बुरा-भला कह चुके हैं .

दुपट्टे फैलाए युवतियां और साड़ी-चादरें फैलाए युवक घूम रहे थे और उपस्थित जनसमुदाय अपने हिसाब से दे रहा था, यथासामर्थ्य दस-बीस-पचास-सौ-पांचसौ रुपए .

कुछ तो था इस बार की पुकार में और इस बार की हुंकार में . जो इससे पहले देखने में नहीं आया .

किसी भी राजनैतिक पार्टी का झंडा नहीं . कोई राजनैतिक नारा नहीं . बेचैनी और उद्वेग से भरा अपार जन-सैलाब . अपने मुखर मौन से अपराधी राजनीति को आतंकित करता सा .

जुलूस कॉलेज स्क्वायर से शुरू हुआ और धर्मतल्ला पर स्थित मेधा पाटकर के मंच के निकट पहुंच कर एक बहुत बड़े समावेश में बदल गया .

नंदीग्राम की वीभत्स घटना और उस पर राज्य के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से नाराज़ लगभग अस्सी हज़ार से एक लाख विचलित किंतु आत्म-नियंत्रित शांतिकामी जनता का स्वतःस्फूर्त जमावड़ा . 

साथ में थे उनके प्रिय लेखक-चित्रकार-गीतकार-फिल्मकार-गायक-नाट्यकर्मी-डॉक्टर-वैज्ञानिक-वकील-विद्यार्थी गण .

जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के  विरल उदाहरण को छोड़ दें तो,  सत्ता हस्तगत करने की दलीय राजनीतिक आकांक्षा से बुलाए गए समावेशों से  परे यह अनूठा जनसमावेश था .

प्रतुल मुखोपाध्याय,पल्लब कीर्तनिया,रूपम और नचिकेता जैसे गायक जनगीत गा रहे थे और हज़ारों लोग उनकी आवाज़ से आवाज़ मिला रहे थे — दुहरा रहे थे . दिल-दिमाग पर छा जाने वाला अद्भुत दृश्य .

इसे महाश्वेता देवी,मेधा पाटकर,जोगेन चौधरी,विभास चक्रवर्ती आदि समाजचेता बुद्धिजीवियों ने सम्बोधित किया .

महाश्वेता देवी ने कहा कि ‘इस समय किसी का अलग कोई नाम नहीं है, सबका नाम है नंदीग्राम’ .

मेधा पाटकर ने कहा कि ‘नंदीग्राम की चिंगारी आग का रूप लेगी. विकास के नाम पर राज्य सरकार झूठ पर झूठ बोले जा रही है. ‘ उन्होंने कहा कि माकपा के कुछ-सौ समर्थक प्रभावित हुए हैं जबकि अत्याचार-पीडित ग्रामवासियों की संख्या दस से पन्द्रह हज़ार है .

इस महाजुलूस/जनसमावेश में शामिल थे महाश्वेता देवी,शंख घोष, सांओली मित्रा,मृणाल सेन,शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय,नवनीता देबसेन, जॉय गोस्वामी,अपर्णा सेन, शुभप्रसन्न, जोगेन चौधरी,विभास चक्रवर्ती,मनोज मित्रा,पूर्णदास बउल,सोहाग सेन,गौतम घोष, ऋतुपर्ण घोष,ममता शंकर, कौशिक सेन, अंजन दत्त,संदीप रॉय, पल्लब कीर्तनिया, नचिकेता, रूपम, परम्ब्रत चटर्जी आदि प्रमुख संस्कृतिकर्मी .

एक ओर जहां मृणाल सेन का आना और उषा उत्थुप का आना और गाना समरशॉल्ट जैसा आश्चर्य था, वहीं अभिनेत्री सोहिनी सेनगुप्ता हल्दर का शामिल होना परिवार के बीच वैचारिक अंतर और व्यक्तिगत स्वतंत्रता हो सकता है अथवा सोची-समझी रणनीति भी .

उनके पतिदेव और नाट्यकर्मी गौतम हालदार आज एक सरकार-समर्थक बुद्धिजीवियों के शांतिबहाली जुलूस का संयोजन करेंगे जिसमें अभिनेता सौमित्र चटर्जी,लेखक सुनील गंगोपाध्याय,पवित्र सरकार,सुबोध सरकार, मल्लिका सेनगुप्ता,जादूगर पीसी सरकार (जूनियर),नाट्यकर्मी उषा गांगुली, शोभा सेन,गायक अमर पाल और अजीजुल हक आदि के शामिल होने की बात है .

खैर कठिन समय में ही यह पहचान होती है कि आप किसकी ओर हैं — आपकी प्रतिबद्धता किधर है .

एक लाख लोगों का यह विरोध क्या गुल खिलाएगा ?  क्या  यह  ‘मोमेन्टम’ लम्बे समय तक जारी रह सकेगा या छीज जाएगा ?  मुझे नहीं पता .

क्या यह बंगाल की राजनीति या सीपीएम के चरित्र में कुछ बदलाव लाएगा ? मैं सचमुच संदेह के घेरे में हूं .

मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य तथा सीपीएम नेता बिनय कोनार, श्यामल चक्रवर्ती,बिमान बोस और सुभाष चक्रवर्ती के हाल तक के बयानों से लगता तो नहीं कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा या खेद या खिन्नता जैसा कोई मनोभाव उपजा हो .

बल्कि इसका उल्टा सोचने के  कारण ज्यादा हैं .

तब आशा की किरण कहां है ?

आशा की एक किरण तो वे छोटे सहयोगी दल — आरएसपी और फ़ॉर्वर्ड ब्लॉक हैं जिन्होंने सीपीएम के इस कारनामे से अलग खड़े होना और दिखना तय किया है .

क्षिति गोस्वामी जैसे वाम मोर्चा के मंत्री हैं जिन्होंने मंत्री पद छोडने की इच्छा जाहिर करते हुए त्यागपत्र देने की घोषणा की है .

उनका यह कहना भी पर्याप्त साहस का काम है कि मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नरेन्द्र मोदी के रास्ते पर चल रहे हैं .

बस इस काले और सर्द समय में इतनी-सी ही उम्मीद बची है जिसके सहारे हमें एक सुहानी सुबह की प्रतीक्षा है .

और यही प्रतीक्षा उन्हें भी है जो नंदीग्राम में एक साल के लम्बे सूर्यास्त में सिर्फ़ बम और बंदूकों की आवाज़ सुन पा रहे थे .

सूर्योदय हुआ नहीं है . सूर्योदय की प्रतीक्षा है .

आमीन!

 

*****

 

Advertisement

9 Responses to “आपोन काजे अचोल होले चोलबे ना, भाई चोलबे ना …”

  1. chandrabhushan Says:

    बागी बंगाल एक बार फिर अपनी पुरानी छवि पर खरा उतरा। यह लड़ाई दूर तक जाए, यही कामना है।

  2. अफ़लातून Says:

    एक ऐतिहासिक दिन की सहभागी रपट , उसे ऐतिहासिक बना गयी । क्या आज जुटे सांस्कृतिक कर्मी स्टालिन की समीक्षा करने के लिए तैयार हैं ?

  3. kakesh Says:

    बंगाल के बुद्धिजीवी अब सरकार के साथ नहीं हैं यह बहुत सुकून देने वाली बात है.

  4. सागर चन्द नाहर Says:

    एक ना एक दिन जनता को जागना ही था, पर जागने का कारण बड़ा दुखद: रहा। काश बिना नन्दीग्राम में लोगों के हताहत हुए जनता जाग पाती।
    कईयों के मुखौटे उघड़ रहे हैं, हम सोचते थे कि कलाकारों ( अभिनेताओं) को अपने काम और पैसों से फुर्सत नहीं है और सीपीएम ….
    दोनो की वास्तविक छवि जनता के सामने आ गई . एक की नन्दीग्राम से और दूसरे की उस जलसे से जिसका वर्णन आपने किया है।

  5. अभय तिवारी Says:

    बंगाल और गुजरात में यही अन्तर रहा..वहाँ बुद्धिजीवियों ने इतने बड़े पैमाने पर प्रतिरोध नहीं किया.. बाहर से लोगों को जा कर विरोध करना पड़ा..

  6. ज्ञानदत्त पाण्डेय Says:

    आप तो सैद्धांतिक और संवेदनात्मक प्रतिबद्धता के चलते इस ‘महामिछिल‘ में हो आये – बहुत साधुवाद।

  7. मनीष Says:

    इस रपट को हम तक पहुँचाने का शुक्रिया। आशा है वो सूर्योदय जल्द ही होगा।

  8. Sanjeet Tripathi Says:

    क्षिति गोस्वामी का कहना सही प्रतीत होता है कि बुद्धदेव, मोदी की राह पर चल रहे हैं।

    जिस सूर्योदय की आप बात कर रहे हैं वह शीघ्रातिशीघ्र हो इन्ही कामनाओं के साथ!!

  9. सृजन शिल्पी Says:

    आशा की किरण कहां है ?

    इस प्रश्न के उत्तर में जिन आधारों पर आप आशा को टिकाना चाह रहे हैं वे खुद सीपीएम की बैसाखियों पर टिके हैं। उनके अलग दिखने की चाहत और नीयत में इतना दम नहीं कि सीपीएम को उसकी अनैतिकता और अन्याय के लिए सत्ता से च्युत कर सकें या इस नापाक सत्ता में साझेदारी करना बंद कर दें।

    लोकतंत्र में बहुमत के खेल में जीत हासिल करने वाले सत्ता के मद में अनैतिकता और सच्चाई का गला घोंटते हुए अन्याय की हदों को पार कर चुके हैं।

    भाड़े के कुछ बुद्धिजीवी उनके पास भी हैं और गाल बजाने वाले, दुष्प्रचार करने वाले, खोखली बयानबाजी करने वाले तो उनके पास पहले से रहे ही हैं।

    हमें यह सोचना होगा कि हमारे संवैधानिक तंत्र में कहां ऐसी खोट है कि सत्ता में बैठ कर अनीति और अन्याय करने वाले लोग बेशर्मी से अपने किए का औचित्य साबित करते रहते हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s


%d bloggers like this: