संकर भाषा के जन्म पर सोहर
उर्फ़
डोंट टच माइ गगरिया मोहन रसिया – भाग ४
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो हिंदी में अंग्रेज़ी के मिश्रण से बनी खिचड़ी भाषा हिंग्रेज़ी के जन्म के बीज संभवतः ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंग्रेज़ अधिकारियों से बातचीत की कोशिश करते हिंदुस्तानी खानसामाओं की बटलरी हिंदी में छुपे रहे होंगे .
लेखन की दुनिया में मिश्रित भाषा के प्रयोग का पहला उदाहरण गोवानी कवि जोसेफ़ फ़ुरतादो (१८७२-१९४७) की कविताओं में मिलता है,जिन्होंने हास्य उत्पन्न करने के लिए ‘पिजिन इंग्लिश’ का प्रयोग किया :
” स्लाय रोग , द ओल्ड ईरानी
हैज़ मेड ए लाख
बाय मिक्सिंग मिल्क विद ‘पानी’ ।”
बॉलीवुड की फ़िल्मी पत्रकारिता में नवीनता और चटपटापन लाने के लिए देवयानी चौबाल और शोभा डे ने इसका उपयोग किया तथा पत्रकारिता में इसका श्रेय द इलस्ट्रेटेड वीकली के तत्कालीन सम्पादक खुशवंत सिंह को जाता है .
इस संदर्भ में यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि भाषिक संकरता के बावज़ूद यह हिंदी में अंग्रेज़ी की नहीं,बल्कि अंग्रेज़ी में हिंदी की मिलावट थी,वह भी आटे में नमक जितनी. भारतीय भाषाओं के विराट समाज की उपस्थिति में बोली जाने वाली अंग्रेज़ी के लिए यह बहुत अस्वाभाविक भी नहीं था .
इस संस्कारित भाषा में इसकी एक प्रचारक देवयानी चौबाल की मृत्यु पर इसके दूसरे झण्डाबरदार खुशवंत सिंह की श्रद्धांजलि की बानगी गौर फ़रमाइए :
” देवयानी’ज़ ग्रेटेस्ट कंट्रीब्यूशन वॉज़ द डिलाइटफ़ुल वे शी मिक्स्ड बॉम्बे उर्दू(हिंदी) विद इंग्लिश . फ़्रॉम हर आई लर्न्ट ‘लाइन मारना’ , ‘भाव’ एण्ड ‘लफ़ड़ा’ . एण्ड नाउ शी हरसेल्फ़ इज़ ‘खलास’ .”
हिंदी पर अंग्रेज़ी का प्रभाव पहले वाक्य-विन्यास तक सीमित था . तत्पश्चात शहरी और कस्बाई मध्यवर्ग की आत्मसम्मानहीनता और मानसिक शिथिलता के चलते बात अंग्रेज़ी शब्दों, विशेषकर संज्ञा और विशेषण,के अबाधित इस्तेमाल तक पहुंची . अब तो स्थिति क्रियापदों के विरूपण तक जा पहुंची है . विज्ञापन जगत तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की अधकचरी हिंदी के साथ अंग्रेज़ी के संयोग से एक अज़ीब-ओ-गरीब कबाइली भाषा प्रचलन में आ रही है .
भारत में अंग्रेज़ी प्रभुवर्ग की भाषा है . विज्ञापन और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर काबिज अधिकांश लोग इसी पृष्ठभूमि से आए हैं . उनका हिंदी ज्ञान न केवल स्तरीय नहीं है,बल्कि बहुत छिछला है .
चूंकि हिंदी एक बड़े उपभोक्ता समाज की भाषा है अतः उसकी उपेक्षा भी संभव नहीं है . ऐसे में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में विज्ञापन तथा संचार माध्यमों के लिए लेखन की कोई स्वस्थ परम्परा विकसित न कर पाने की स्थिति में मिलावटी हिंदी का प्रयोग एक मज़बूरी है . यानी उनकी मज़बूरी इस नई भाषा को गढ रही है .
इससे भी दुखद तथ्य यह है कि यह संकर भाषा, अंग्रेज़ी न जानने वाले ऐसे विशाल उपभोक्ता वर्ग को जिसके भाषिक संस्कार भ्रष्ट हो चुके हैं, आत्मतुष्टि का छायाभास देने लगी है .
क्रमशः
जुलाई 30, 2007 को 7:13 पूर्वाह्न |
अच्छा है लेकिन मुझे लगता है कि गगरिया का साइज बहुत छोटा रख रहे हैं आप। पढ़ने में तारतम्यता टूट सकती है। 🙂
जुलाई 30, 2007 को 8:02 पूर्वाह्न |
भरोसा रखिए , इससे दुगना भी एक कड़ी में पढ़ना सहज होगा ।
जुलाई 30, 2007 को 9:10 पूर्वाह्न |
अच्छा विषय है. बहुत कम लोग हिग्लिश के इतिहास को जानते है. बेहतरीन
जुलाई 31, 2007 को 2:42 पूर्वाह्न |
[…] आजकल संकर भाषा के पनघट पर अपनी गगरी कम कुल्हड़ ज्यादा फोड़ रहे […]
जुलाई 31, 2007 को 8:59 पूर्वाह्न |
@ अनूप शुक्ल : भाईश्री! अबकी बार गगरिया का साइज़ बढाकर पूरा पानी उलीच दूंगा . आपकी बात ठीक है .
@ अफ़लातून : ठीक है अब आपने अपनी झेलन ‘कैपेसिटी’ बता दी है सो डोज़ उसके अन्रूप होगा .
@ रमाशंकर शुक्ल : भाई रमाशंकर जी तारीफ़ के लिए और हौसला बढाने के लिए शुक्रिया !