हमारे यहां कंटिया फ़ंसाने की सामाजिक स्वीकृति है.
धनिया में लीद मिलाने और कालीमिर्च में पपीते के बीज मिलाने को सामाजिक अनुमोदन है.
रिश्वत लेना और देना सामान्य और स्वीकृत परंपरा है और उसे लगभग रीति-रिवाज़ के रूप में मान्यता है.
कन्या-भ्रूण की हत्या यहां रोज़मर्रा का कर्म है और अपने से कमज़ोर को लतियाना अघोषित धर्म है .
काहिली और कामचोरी हमारा स्वर्ग है और चापलूसी-मुसाहिबी अपवर्ग .
शिकायत हमारा संध्या-नियम है, मंत्रोच्चार है और भ्रष्टाचार में प्रकट-प्रदर्शित हमारा सुविचार और आचार है .
अगर किसी की लड़की अपनी मर्ज़ी से, अपनी पसन्द के किसी लड़के से शादी कर ले तो महाभारत है, विश्व-युद्ध है और बिजली का ४४० वोल्ट का करेंट है . यह पाप और पतन की पराकाष्ठा है, पर गणेश जी को दूध पिलाना हमारी धार्मिक आस्था है .
पड़ोसी की लड़की के प्रेम विवाह करने पर फ़लाने की लड़की भाग गई इसका जोर-शोर से संचार है, प्रचार है और उससे उपजा जुगुप्सा और जुगाली का रसबोध है . पर हमारी बेबी तो बिलकुल गऊ है, अबोध है .
हमारा लड़का हमें गरियाते और जुतियाते हुए भी श्रवणकुमार है , पर पड़ोसी का ठीक-ठाक-सा लड़का भी बिलावजह दुष्ट और बदकार है .
परम्परा हमारे रसबोध का स्रोत है . परम्परा हमारे जीवन का आधार है .
परम्परा हमारे हर मर्ज की रामबाण दवा है . परम्परा हमारे नैतिकबोध का सार है .
हमें अपनी परम्पराओं पर गर्व है .
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जुलाई 20, 2007 को 10:15 पूर्वाह्न |
गुस्से में लगते हैं महाशय. क्या बात हो गयी?
जुलाई 20, 2007 को 4:35 अपराह्न |
बहुत खूब!